Friday 19 October 2018

मैं बनना कुछ चाहती थी बन कुछ गयी। कहते हैं प्रभु की सत्ता है, प्रभु का स्क्रीन-प्ले strong होता है। आपने जैसा सोचा होता है वैसा नहीं होता है। आप किसी बात के लिए बहुत कोशिश करते रहते हैं और वो काम नहीं होता आपका  कोई भलता काम हो जाता है आपका जुगाड़ हो जाता है आप के लिये कुछ इंतज़ाम हो जाता है,  लेकिन जैसा आपने सोचा वैसा नहीं होता कोई एक अजीब सी शक्ति है, ताक़त है जो सोचती है कुछ और... और हो कुछ और जाता है। 

लेकिन लोग कहते हैं  मैं प्रभु की शरणागत हूँ और मैं ईश्वर के शरणागत हूँ।
मुझे एक question दिमाग़ में आता है कि मेरे अंदर भी तो आत्म परमात्म हैं। तो मेरी परमात्म ने क्या ग़लत चाहा, सोचा कि मुझे ये बनना था और मेरे परमात्म ने क्या ग़लत चाहा कि ऐसे होना चाहिए, फिर ये बाहरी सत्ता कौन सी है जो मुझे मजबूर करती है कि ऐसा करो वैसा करो और मैं करती जाती हूँ, करो तो मुझे कोई बोलता ही नहीं रोज़ अचानक से एक सुबह होती है मैं उस दिशा में बढ़ती जाती हूँ। मेरे लिए कोई choice नहीं रहती अभी ये करना है अभी वो करना है। अभी इसका कॉल आया है और फिर मैं उस दिशा में बढ़ती जाती हूँ, जब रात को सोती हूँ तो कई सारे सवाल दिमाग़ में होते हैं आज मैंने singing नहीं की गाना नहीं गाया, मैं भी सिंगर बनना चाहती थी अपनी माँ की तरह, आज मैंने writing, music direction के लिये approach नहीं किया। आज मैंने पैसों के काम के लिये कुछ नहीं किया। मैंने वो किया जो मेरे रास्ते में आता गया। 


और फिर अपने आपको तसल्ली देने के लिए लोग ये कहते हैं कि जो हरि इच्छा, प्रभु इच्छा फिर वो प्रभु जो मेरे अंदर है उसका क्या क्योंकि ये दो तरह का confusion है मेरे mind में कि आत्म ही परमात्म है और उसी के अंदर उतर कर विपासना की जाती है, अपने आपको ठीक किया जाता है, मेडिटेशन किया जाता है, तबियत ठीक की जाती है जो जो चाहिए वो पाया जाता है लेकिन जब मैं चाहती हूँ कि ऐसा हो जाये तब वो होता नहीं है तब वो बाहरी सत्ता किसकी है बाहर कौन control कर रहा है मुझे.....
एक बार सोचने का विषय है।


----- कामिनी खन्ना

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