Monday 15 March 2021

सहेलियां

तुम कही खोई ही नही..
ढूँढू क्यो?
आज भी मेरी लट उलझी हुई है..
सुलझा दो न..
कांधे पर तुम्हारे सिर रखकर मुस्कुराना चाहती हूँ..
हाथ पकड़ तुम्हारा
उन रास्तो पर,
फिरसे सरपट दौड़ना चाहती हू..
वो ब्लू बीन इस्त्री का
स्कर्ट और थोडासा मैला ब्लाउज पहनना चाहती हूँ,
रेल की पटरियां,
लिमलेट की गोलियों को दोहराना चाहती हूँ..
खट्टी मीठी इमलियाँ
टीचर की धौल खाना चाहती हूँ..
भोर में दरवाजे पर तुम्हारी दस्तक याद है मुझे..
चम्पा के फूल बीच बीच में मुझे आवाज देते है..
और मैं कहती हूँ
मेरी सहेलियां आ गयी..
कभी वापस न जाने के लिए..
कामिनी खन्ना🌻